ऑस्ट्रेलिया की आग बहुत बड़ी त्रासदी है

ऑस्ट्रेलिया की आग मानवजाति और पर्यावरण का सबसे बड़ा संकट है


दुनिया का फेफड़ा कहे जाने वाले ब्राजील के अमेजन के जंगलों की विनाशकारी आग पूरी तरह बुझी भी नहीं थी कि विश्व के एक और जैवविविधता के धनी क्षेत्र ऑस्ट्रेलिया की दावनल ने दुनिया को ही दहला दिया। ऑस्ट्रेलिया विश्व के उन 17 देशों में से एक है जिन्हें जैव विविधता की दृष्टि से सबसे सम्पन्न या मेगा डाइवर्सिटी नेशन कहा जाता है।



दरअसल, वहां अण्डे देने वाले दुर्लभ स्तनपायी भी हैं। यहां पृथ्वी का 10 प्रतिशत से अधिक जैविक विविधता का भण्डार मौजूद है। दिल दहलाने वाली बात तो यह है कि वहां 100 करोड़ जीवों के मरने के आंकड़े को विशेषज्ञ कम बता रहे हैं। इस दावानल से वन्यजीव संसार की तबाही के अलावा इससे मौसम परिवर्तन सहित अन्य पर्यावरणीय दुष्प्रभाव अवश्यंभावी हैं।


पादप और जीवों की श्रृंखला ध्वस्त
इस पृथ्वी पर अगर जीवन अस्तित्व में है तो उसके लिए लाखों पादप और जीव प्रजातियों का योगदान है। वनस्पति के बिना जीवधारियों का और जीवधारियों के बिना वनस्पतियों का अस्तित्व संभव नहीं है। पादप से जीवधारियों को भोजन, ऑक्सीजन, शरण और पोषक तत्व मिलते हैं तो पादपों को जीवधारियों से खाद या पोषक तत्व के साथ ही फोटो सिन्थेसिस के लिए कार्बन डाइऑक्साइड और पशु-पक्षी बीजों को बिखेरने में मदद मिलती है जिससे वनस्पति उगती और फैलती है। यही नहीं किसी एक जीवधारी की प्रजाति भी अकेले जीवित नहीं रह सकती।


प्रकृति में वनस्पति को खाने वाले शाकाहारी जीव हैं तो उन शाकाहारियों पर भोजन के लिए बाघ और शेर जैसे मांसाहरी निर्भर होते हैं। इनके बीच में आदमी जैसे ओम्नीवोरस जीव भी हैं जो कि मांस और वनस्पति दोनों खाते हैं। जब ये मर जाते हैं तो फिर धरती से वनस्पति के माध्यम से ग्रहण किए गए तत्व वापस धरती में चले जाते हैं।


धरती के फेफड़े जल रहे हैं
गत् वर्ष अमेजन के जंगलों से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक भड़की दावानल ने अरबों जीवों का महाविनास करने के साथ ही प्रकृति की पादप और जीवों के बीच की व्यवस्था को ही तहस-नहस कर दिया। जो घने जंगल प्राण वायु ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते थे उनके ऊपर कार्बन डाइऑक्साइड के घने बादल मंडरा रहे हैं।


मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार 2019 का साल ऑस्ट्रेलिया के लिए पिछले 125 सालों में सबसे शुष्क और गर्म रहा। हम उत्तराखण्ड सहित उत्तर भारत के लोग इन दिनों ठंड से कांप रहे हैं और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश में 7 जनवरी 2020 का तापमान 40.30 डिग्री सेंटीग्रेट मापा गया। सितम्बर में तो पारा 45 का अंक पार कर गया था। दावानल ने वहां के जंगलों को जीवन विहीन कर दिया है।


मीडिया में जानवरों के बहुत ही दारुण चित्र आये हैं। अगर कोई जीव बचा भी होगा तो वह खाएगा क्या? वहां वनस्पतियां भी तो खाक हो गईं। शेर, तेंदुए, जंगली कुत्ते और हायना जैसे बचे खुचे मांसाहारी जीव भी तभी जीवित रह पाएंगे जब कि जंगलों में हिरन जैसे शिकार बचे हुए हों। पता नहीं सामान्य स्थिति के लाटने में कितने दशक लगेंगे और स्थिति सामान्य हुई भी तो पता नहीं कौन-कौन से प्रजातियां वापस लौट पाएंगी। 


100 करोड़ से ज्यादा जीव जल कर मरे
ऑस्ट्रेलिया की दावानल में मरने वाले जीवों के बारे में जो अनुमान आ रहे हैं वे बेहद विचलित करने वाले हैं। सिडनी विश्व विद्यालय के पारिस्थितिकी तंत्र विशेषज्ञ क्रिस डिकमैन ने गत् 8 जनवरी को आग से जल मरने वाले जीवों का जो आंकड़ा दिया है उसके अनुसार ऑस्ट्रेलिया में दावानल से लगभग 100 करोड़ वन्यजीव मारे गए हैं। इनमें से अकेले साउथ वेल्स में 80 करोड़ वन्य जीव शामिल हैं, जिनमें स्तनधारी, पक्षी और रेंगने वाले जीवधारी बताए गए थे। जिनमें कीड़े-मकोड़े, मेंढक और चमगादड़ जैसे जीव शामिल नहीं थे। 
(लेेेखक वरिष्ठ पत्रकार एवम स्तम्भकार है)